हाँ मैं शायद नहीं थी उन कतारों में
आप की महफिल जहॉं सजी थी प्यारो में
रात मुझे हसीं सपने दिखा गयी
वैसे सुबह भरी हुवी थी तकरारो में
कहो तो जान दे दू साबित करने प्यार अपना
पर फिर तुम क्या पाओगे मुझे मजारों में
आँख में आंसू, हंसी लबो पे
अभिनय सीख लिया है अनेक किरदारों में
क्या कभी कोई मुझको याद करे?
क्या हुं मै कही किसी के विचारों में
कवयित्री: प्रिती कोलेकर
प्रितीची ही कविता वाचून मला अशी चाल स्फुरली.
अजून दुसरी एक चाल ऐका.
कोणत्याही टिप्पण्या नाहीत:
टिप्पणी पोस्ट करा